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The play took 12 years to come out in a book form. Few of the plays are still in the manuscript form... Gradually will publish them too. Thanks to people who have booked copy of KKZ.. believe me, it's encouraging.
Excerpts from book
भालेराव : कुछ नही... बूढ़ा हो गया हूँ। घर में अनवांटेड आइडेंटी हूँ। बच्चे न तो मेरा बोझ उठा पाते है और ना ही मेरी ना रूकने वाली खाँसी बर्दाश्त कर पाते है। सोचता हूँ किसी दिन रेल की पटरी के नीचे जाकर मर जाऊँ।
तुकाराम : ऐसी कैसी बात करता है! ज्यादा तकलीफ है तो चल मेरे घर, मैं रखूँगा तुझे।
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